
समाज मे आज भौतिकतावादी संस्कृति और अहम इतना हावी हो गया है कि लोग दूसरे की असुविधा और अपने सामाजिक और नैतिक दायित्वों को पूरी तरह से नकार चुके हैं।बसों और ट्रेनों और मेट्रो में अक्सर महिलाएं,बुजुर्ग और खड़े होने असमर्थ लोगों को कोई सीट देने की पेशकश नहीं करता है।एक व्यक्ति चाहे किसी भी आयु का हो यदि कमजोर,बीमार या अक्षम है तो वो सभी से सहानुभूति और बैठने का स्थान पाने का अधिकारी होता है।लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है।पुरुषों की बात छोड़िए, अब महिलायें ज्यादा कठोर हो गई हैं।महिलाएं पुरुषों को तो सीट नहीं देंगी पर दूसरी महिला को भी सीट नहीं देती नहीं।



कल ही दो वाकये एक ही बस में मेरे साथ पेश आये।में कानपुर से लौट रहा था।लंबे सफर से थका हुआ था सो दो लड़के जो दुबले पतले थे और पैर फैला कर बैठे थे,उनसे थोड़ी जगह बनाने को कहा तो साफ मना कर दिया।
दूसरे वाकये में एक 23-24 साल की महिला अपने बच्चे को किसी तरह लटकाये हुए एक हाथ से पाइप पकड़े खड़ी थी,किसी भी समय झटके से बच्चा उसके हाथ से गिर सकता था।आजू बाजू में महिलाएं आराम से बैठी थीं।जहां वो खड़ी थी उस सीट पर एक महिला,उसका पति और 12 साल का एक बच्चा बैठे थे।तीन सीटों वाली उस बर्थ पर उस दुबली पतली महिला को बड़ी आसानी से एडजस्ट किया जा सकता था।पर उस परिवार को तरस नहीं आया।और में खुद गेट पर खड़ा था सो असहाय था।
तभी कंडक्टर सीट पर इटावा से आ रहे एक पति पत्नी की नजर उस पर पड़ी।इस दंपत्ती के साथ दो बच्चे भी थे।पति तुरंत खड़ा हो गया और उस महिला से बोला -आप मेरे बच्चे को गोद मे लेकर मेरी सीट पर बैठ जाओ सिस्टर।।
मुझे बहुत खुशी हुई और क्षोभ उन महिलाओं पर जो उसको खड़ा देखकर भी नहीं पसीजी।
समाज की उदासीनता को उजागर करते हुए ट्विटर पर एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक महिला मेट्रो में फर्श पर बैठी है जबकि अन्य यात्री सीटों पर बैठे हैं.
वीडियो से ऐसा लग रहा है कि किसी ने महिला को सीट ऑफर नहीं की और उसे फर्श पर बैठना पड़ा. इस बीच, अन्य यात्री अपनी सीटों पर आराम से बैठे हैं, लेकिन महिला के लिए कोई भी दया नहीं है. वीडियो को आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने ट्विटर पर शेयर किया. इस वीडियो को शेयर करते हुए आईएएस अधिकारी ने कैप्शन में लिखा, ‘आपकी डिग्री सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है, अगर वो आपके व्यवहार में ना दिखे.’
मेट्रो में बच्चे के साथ जमीन पर बैठ गई मां
इस वीडियो ने ट्विटर पर हंगामा मचा दिया है. कई लोगों ने कहा कि आजकल लोगों को अपने साथियों के लिए कोई दया नहीं है. भारतीय कवि और पत्रकार प्रीतिश नंदी ने भी वीडियो पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और लिखा, ‘हम कोलकाता में पले-बढ़े हैं, हमेशा खड़े रहना और अपनी सीट (बस या ट्राम में) एक महिला को देना सिखाया, भले ही महिला का बच्चा हो, बुजुर्ग या जवान हो या फिर कोई दिव्यांग. इसे हमारे समय में शिष्टाचार कहा जाता था.’