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पीलीभीत। रामलीला महोत्सव में सोमवार को भरत के वन जाकर श्रीराम को लौटने के आग्रह की लीला का मंचन हुआ। भरत अपने भ्राता श्रीराम को मनाने की काफी कोशिश करते हैं, लेकिन श्रीराम नहीं मानते। इसके बाद गुरु वशिष्ठ के कहने पर भरत श्रीराम की चरणपादुका सिर पर रखकर अयोध्या ले जाते हैं।
लीला मंचन में दिखाया गया कि अयोध्या का माहौल भगवान श्रीराम के विरह में शोकाकुल है। इस बीच महाराज दशरथ अपने प्राण त्याग देते हैं। अगले दृश्य में भरत और शत्रुघ्न का अयोध्या में प्रवेश होता है। राम, लक्ष्मण व सीता के वनवास व पिता दशरथ के मरण का समाचार पाकर वह दुखी हो जाते हैं। भरत गुरु वशिष्ठ से कहते हैं कि मुझे राज्य नहीं चाहिए। मेरा कल्याण तो भैया श्रीराम के चरणों में है। इसके पश्चात भरत- शत्रुघ्न श्रीराम को मनाने के लिए निकल पड़ते हैं।
चित्रकूट में राम-भरत मिलाप के दृश्य को देखकर सभी की आंखें भर आती हैं। भरत सहित माताएं, गुरुदेव सभी श्रीराम को मनाने की कोशिश करते हैं। गुरु वशिष्ठ कहते हैं कि आप अपनी चरणपादुका भरत को सौंप दें, जिन्हें राजगद्दी पर रखकर भरत राज करेंगे। भरत श्रीराम की चरणपादुका माथे पर लगाते हैं, इस बीच पार्श्व में शीश पर खड़ाऊं आंखों में पानी, रामभक्त ले चला रे राम की निशानी…भजन बजता है। इस मौके पर महंत ओमकार नाथ, सुनील मिश्रा, केशव सक्सेना, भानु प्रताप सिंह, अमरीश शर्मा, रमाकान्त पाण्डेय, प्रेम सिंह, अमिताभ त्रिपाठी, नरेश शुक्ला, संजीव सिंह, अमित जौहरी, संजीव शर्मा, संजीव मिश्रा, अवनीश शर्मा आदि उपस्थित रहे।
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