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कमालगंज। 190 साल पहले बिशुनगढ़ के राजा के यहां से आए रामलीला के सामान से कमालगंज में रामलीला की गौरवशाली परंपरा शुरू हुई। हरदोई के खद्दीपुर नरेश की हथिनी पर बैठकर लंका पति रावण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व उनकी सेना से युद्ध करता था। कानपुर-फतेहगढ़ मार्ग स्थित चौराहे पर बीच सड़क पर राम दरबार की हनुमान-अंगद द्वारा उछल-उछल कर की जाने वाली आरती का अनूठा कार्यक्रम कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

जैसा नाम उसी की तरह कमालगंज की रामलीला भी कमाल की रही है। कस्बा निवासी सत्यनारायण के परिवार के लोग 190 साल पहले कन्नौज के बिशुनगढ़ के राजा के यहां से रामलीला का सामान लाए, तो रामकाज की लीला की नींव पड़ी। हरदोई जनपद के लोगों का यहां की रामलीला से जुड़ाव रहा है। राम बरात व रावण वध के दिन घोड़ा, बैलगाड़ी आदि साधनों से हरदोई के खद्दीपुर, बारामऊ, बेड़ीजोर, दहिलिया, मुच्चा, टिकार, पलिया आदि कई गांवों से लोग गंगापार करके लीला देखने आते थे।

इसीलिए खद्दीपुर नरेश भी रामलीला से जुड़े थे। केशव गुप्ता का कहना है कि उनके ताऊ रामगोपाल गुप्ता बताते थे कि रावण वध के दिन खद्दीपुर नरेश की हथिनी पर बैठकर रावण युद्ध करता था। राम बरात में भी हथिनी शामिल होती थी। वहीं, चौराहे पर राम दरबार की हनुमान-अंगद द्वारा की जाने वाली आरती अनूठी है। रात नौ बजे दोनों ओर के वाहनों को रोक दिया जाता है। फिर हनुमान-अंगद 100 फीट लंबे व 40 फीट चौड़े घेरे में उछल-उछल कर घूमते हुए आरती करते हैं। चारों ओर भीड़ जयकारा लगाती है।

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