[ad_1]

बीसलपुर का रामलीला मैदान
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पीलीभीत के बीसलपुर का रामलीला मेला लगभग सवा सौ वर्ष पुराना है। मेला कई खट्टे-मीठे अनुभव संजोए हुए है। मेला कमेटी के उपाध्यक्ष वयोवृद्ध विष्णु गोयल ने बताया कि करीब सवा सौ वर्ष पूर्व बदायूं से यहां आकर बसे कटहरिया जाति के लोगों ने मेला शुरू कराया था। वे लोग गुलेश्वर नाथ मंदिर के पास पशु चराते समय रामलीला का अभिनय अपने स्तर से करते थे।
तत्कालीन तहसीलदार भूपसिंह ने कटहरिया जाति के इन चरवाहों की भावनाओं को महसूस करते हुए इनके अभिनय को वास्तविकता में बदलवा दिया। प्रारंभ के कुछ वर्षो में यह मेला छोटे से मंच पर होता रहा। बाद में विशाल मैदान में होने लगा। इस मेले की वजह से नगर को एक विशिष्ट पहचान मिली है।
शुरुआत में यह मेला चंदे से होता था। वर्ष 1936 से मेले की बागडोर मोहल्ला दुबे निवासी अधिवक्ता देवीदास ने अपने हाथों में ले ली। मेले की अवधि तीन सप्ताह की है। मेला कमेटी के लोगों ने मेले को आकर्षक बनाने के लिए रावण वध लीला के बाद 10 दिन की रासलीला करानी शुरू कर दी है। लीला में मंचन करने वाले कलाकार मेला कमेटी से कोई भी पारिश्रमिक नहीं लेते हैं।
[ad_2]
Source link