फर्रुखाबाद। डॉ. राममनोहर लोहिया पुरुष अस्पताल की ब्लड बैंक में ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर यूनिट पूरी तरह तैयार है। छह माह पहले लाइसेंस के लिए आवेदन किया गया, मगर जिम्मेदार अधिकारी जांच करने नहीं आ रहे हैं। जिले में पैर पसार रहा डेंगू के अलावा थैलेसीमिया, एड्स और बर्न के मरीजों को प्लाजमा, प्लेटलेट्स के लिए निजी अस्पतालों में मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है। जिम्मेदार कागजी कार्रवाई में तेजी लाने में रुचि नहीं ले रहे।
इन दिनों डेंगू के अलावा अन्य तरह के बुखारों में भी प्लेटलेट्स तेजी से गिर रही हैं। लोहिया अस्पताल में बुखार के रोजाना 200 से अधिक मरीज पहुंच रहे हैं। यही नहीं कीरतपुर, रोशनाबाद व कुतुलूपुर गांव में डेंगू के कई मरीज निकल चुके हैं। इन मरीजों को सरकारी अस्पतालों में इलाज होना संभव नहीं है, क्योंकि प्लेटलेट्स की कोई व्यवस्था नहीं है।
लोहिया अस्पताल में करीब छह माह से ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर यूनिट की सभी मशीनें लगने के बाद व्यवस्थाएं पूरी हो गईं। यही नहीं लाइसेंस के लिए आवेदन भी कर दिया गया। मगर अभी तक जांच के लिए जिम्मेदार अधिकारी ब्लड बैंक नहीं पहुंचे। इसके चलते सेपरेटर से मिलने वाले चार तरह के मरीजों को निजी अस्पतालों में मोटी रकम खर्च करके इलाज कराना पड़ रहा है।
एक यूनिट ब्लड से चार तरह के मरीजों का होगा इलाज
-थैलेसीमिया: ऐसे मरीजों को लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) की जरूरत होती है। अब ब्लड से आरबीसी अलग करके थैलेसीमिया के मरीजों को चढ़ाना आसान होगा।
-डेंगू: डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाए जाते हैं। इस मशीन की मदद से खून से प्लेटलेट्स अलग किए जाएंगे।
-बर्न केस यानी जले हुए : बर्न केस के मरीजों को बचाने के लिए प्लाजमा की जरूरत होती है। यहां पर इस तरह की व्यवस्था नहीं है। इस मशीन से अब प्लाजमा और फ्रेश फ्रोजन प्लाजमा (एफएफपी) को अलग कर चढ़ाए जा सकेंगे।
-एड्स : एड्स के मरीजों को श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) की जरूरत होती है। यह मशीन खून से डब्ल्यूबीसी को अलग करने में भी कारगर साबित होगी।
मरीजों से लिए जाते हैं पांच हजार रुपये
जिन निजी अस्पतालों में सेपरेटर मशीन लगी है, वहां मरीजों से मोटी रकम ली जा रही है। प्लेटलेट्स जरूरत वाले मरीज के लिए एक यूनिट ब्लड लेने के बाद 400 रुपये व बिना ब्लड देने पर तीन हजार रुपये लिए जाते हैं। थैलीसीमिया के मरीजों की आरबीसी की जरूरत होती है। यदि एक यूनिट ब्लड देता है तो 1400 और न देने पर पांच हजार रुपये लिए जाते हैं। प्लाट्मा के लिए मरीजों को चार हजार रुपये खर्च करने होते हैं। एड्स के मरीज के लिए जरूरत प़ड़ने वाली डब्ल्यूबीसी की सुविधा यहां नहीं है।
नियमानुसार सभी जरूरतें पूरी कर ली गई हैं। लाइसेंस के आवेदन के बाद दो बार रिमाइंडर भी भेज चुके हैं। अभी तक दिल्ली और स्थानीय जिम्मेदार अधिकारी जांच करने नहीं आए हैं। कुछ दिन पहले दिल्ली ऑफिस से एक पत्र मिला है। उसमें 15 दिन में आने की बात कही गई है। फिलहाल तिथि नहीं खोली गई है। अफसरों के आने का इंतजार है।
-डॉ. किरीटी कनौजिया, पैथोलॉजिस्ट, ब्लड बैंक प्रभारी