
राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा
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विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने 2024 के संसदीय चुनावों के लिए कमर कस ली है। सभी दल मिलकर गठबंधन को मजबूती देने में लगे हैं। सबकी कोशिश एकजुट होकर भाजपा को आगामी चुनावों में शिकस्त देने की है। इसी संदर्भ में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा से अमर उजाला संवाददाता विनोद डबास ने कई सवाल किए।
केंद्र सरकार का इंडिया से भारत की तरफ जाने के पीछे की वजह को आप कैसे देखते हैं?
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इंडिया नाम से बहुत ही प्यार रहा है। सत्ता हासिल करने के बाद से लेकर इंडिया गठबंधन बनने तक अपनी कई योजनाओं को इंडिया नाम से जोड़ा। इन योजनाओं को प्रचारित करने की भी कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन विपक्षी दलों के अपने गठबंधन का नाम इंडिया रख लेने पर वह घबरा गए हैं और अब उनको इंडिया नाम से नफरत हो गई है। अगर हम अपने गठबंधन का नाम बदलकर मोदी कर देंगे तो क्या वह अपने नाम से अपना सरनेम हटा लेंगे। प्रधानमंत्री व भाजपा इंडिया गठबंधन से ध्यान हटाने व जनता को गुमराह करने में जुटे हैं।
इंडिया गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के तौर पर कौन चेहरा होगा?
यह सवाल मीडिया ही नहीं, भाजपा भी कर रही है। इससे साबित हो रहा है कि इंडिया गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। कई अनुभवी नाम हैं। जब वक्त आएगा, गठबंधन के किसी भी योग्य नेता को प्रधानमंत्री के तौर पर चुन लिया जाएगा। इंडिया गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के लिए नेताओं की कोई कमी नहीं है। गठबंधन में शामिल अनेक नेता कई दशकों से राजनीति कर रहे हैं और वह केंद्र सरकार में कई बार मंत्री रह चुके हैं और अपने राज्यों के मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं। उनके पास काफी लंबा राजनीतिक व सरकार चलाने का अनुभव है।
आपके सरकार बना लेने के दावे के पीछे का आधार क्या है?
देश में 1977 जैसे हालात हैं। उस दौरान भी महंगाई, बेरोेजगारी व तानाशाही थी। उसके खिलाफ जनता पार्टी के बैनर तले विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाया था, तभी सरकार को शिकस्त दी गई थी। ऐसे ही आज भी देश में महंगाई, बेरोजगारी व तानाशाही है। इंडिया गठबंधन से ध्यान हटाने के लिए देश की जनता को गुमराह करने की दिशा में नए-नए हथकंडे अपनाने में जुट गए हैं, मगर देश की जनता झांसे में आने वाली नहीं है, क्योंकि भाजपा की केंद्र सरकार ने रोजगार देने का वादा पूरा नहीं किया और महंगाई पर काबू पाने के बजाय उसे बेलगाम कर दिया। इस कारण देश में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ गई और आम जनता के घर से सब्जी गायब हो गई और उसके समक्ष चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया। वहीं चारों ओर तानाशाही का बोलबाला है। विपक्षी दलों को दबाया जा रहा है और आम जनता की सुनवाई नहीं हो रही है। इस सबसे देश को निजात दिलाने के लिए विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाया है। इस बार भी इतिहास दोहराया जाएगा। गठबंधन जीतेगा और खुशहाली आएगी।
सीटों का बंटवारा कैसे होगा?
इंडिया गठबंधन का मकसद भाजपा को हराना है। इस कारण गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के बीच प्रधानमंत्री, मंत्री व सांसद बनने की होड़ नहीं है। इस कारण अभी तक इन मसलों पर कोई चर्चा नहीं हुई है। वह पूरी स्थिति से वाकिफ हैं और राज्यवार गठबंधन में शामिल दलों की स्थिति व उनके बीच तालमेल बनाते हुए सीटों का बंटवारा कर लिया जाएगा।
वन नेशन और वन इलेक्शन की पहल कितनी सही है?
वन नेशन और वन इलेक्शन जनता का मुद्दा नहीं है। यह कदम केवल जनता से दूर रहने का निर्णय है। अब तीन-चार माह में किसी न किसी राज्य के चुनाव होते रहते हैं। इस कारण राजनीतिक दलों को समय-समय पर अपने कामकाज का हिसाब देना पड़ता है, मगर पूरे देेश में एक साथ चुनाव होने पर सत्तारूढ़ दल को जनता के बीच हिसाब देने की चिंता नहीं रहेगी और महंगाई बढ़ाकर उसके नेता चार साल 11 माह मौज करेंगे। चुनाव के समय विभिन्न मामलों में सब्सिडी का एलान करके जीतने का प्रयास किया जाएगा।
केंद्र सरकार की संसद का विशेष सत्र बुलाने के पीछे क्या मंशा है?
देश के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा सत्र बुलाया गया है जिसके एजेंडे के बारे में दो व्यक्तियों के अलावा किसी को भी पता नहीं है, जबकि पहले बुलाए गए सत्रों के एजेंडे के बारे में सार्वजनिक तौर पर बताया गया था। इसके अलावा इस सत्र में प्रश्नकाल व शून्यकाल काल का प्रावधान नहीं किया गया है। इसके बावजूद इंडिया गठबंधन ने विशेष सत्र में महंगाई, बेरोजगारी, मणिपुर हिंसा, चीन की नापाक हरकतों के मुद्दे को उठाने की तैयारी की है।