पांच सितंबर को छह राज्यों में हुए उपचुनावों में I.N.D.I.A को चार तो ND A को तीन सीटें मिलने जहां एनडीए खेमे में हताशा दिखाई पड़ी वहीं इंडिया खेमा अति उत्साहित दिखा।अलप ज्ञानियों ने ये भी कहना शुरू कर दिया कि एनडीए से।जनता का मोहभंग हो चुका है और अब इण्डिया ही सत्ता में आएगी।
लेकिन अगर हम अमृत लाल जो कि राजनीतिक विश्लेषक और पुरोधा भी हैं कि मानें तो इस चुनाव के नतीजों से किसी भी अति उत्साहित या हताश होने की आवश्यकता नहीं है क्यों एक घोसी सीट को छोड़कर कहीं कुछ अप्रत्याशित महीन हुआ है।
NDA ने सिर्फ अपनी पारंपरिक सीटों पर ही कब्जा किया है लेकिन वोटों का अंतर घटा है तो इसमें उसे सोचने की जरूरत है।
केरल की सीट पूर्व सी एम चांडी के पुत्र को मिली है ।दूसरी सीट बंगाल में ममता की पार्टी के कंडीडेट को मिली है और बेहद कम अंतर से जीती गई क्योंकि दूसरे नम्बर पर भाजपा कैंडिडेट रहा।घोसी सीट भी पहले से ही सपा के पास थी वहीं झारखंड की डुमरी सीट J M M ने जीती जो कि उसकी अपनी परंपरागत सीट थी।
दूसरी तरफ भाजपा ने जो सीटें जीतीं उनमे से दो त्रिपुरा में हैं जिनमे से एक मुस्लिम कैंडिडेट ने भाजपा के बैनर तले जीती है।तीसरी सीट बागेश्वर उत्तराखंड में जीति है।
सिर्फ घोसी सीट ही ऐसी है जो NDA ने बहुत ज्यादा अंतर से हारी है।हार का इतना बड़ा अंतर भितरघात की संभावना दिखाती है।ऐसा लगता है घटक दलों ने ही भाजपा को ये सीट हरवाई है।
क्योकि ऐसा नहीं हो सकता है कि इतनी बड़ी हार हो और हाई कमान और मुख्यमंत्री को इसका पता भी न चल पाये।ऐसा लगता है कि वहां पर NDA घटक दलों के बड़बोलेपन ने ही उन्हें धराशायी किया है।ऐसे में NDA को इस हार की गहन छानवीन कर कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

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